पाशुपत-सम्प्रदाय के रवततकों में लकु लीश का स्थान

Journal Title: International journal of research -GRANTHAALAYAH - Year 2019, Vol 7, Issue 9

Abstract

पाषुपत-सम्प्रदाय की उत्पत्ति छठीं-पाॅचवीं शताब्दी ई. पू. में हुई होगी। परन्तु इससे यह अभिप्राय नही ं निकालना चाहिए कि पाषुपत सम्प्रदाय का उद्भव छठवीं-पाॅचवी शताब्दी ई. पू. कि कोई आकस्मिक घटना मात्र है, क्योंकि किसी भी धार्मिक संस्था अथवा विचारधारा का उद्भव विभिन्न प्रवृत्तियों और परम्पराओं और प्रवृत्तियों और परम्पराओं के पारस्परिक आदान-प्रदान एवं संघात के फलस्वरूप होता है, जो कि शताब्दियों से उस मत विषेष में होती रहती है। भारतीय धर्मसाधना और प्रवृत्तियों को निरन्तर सम्मिश्रण होता रहा है। अतः हम किसी भी धार्मिक संस्था अथवा सिद्धान्त को सर्वथा एकेान्मुख नही मान सकते है। पाषुपत सम्प्रदाय के उद्भव का इतिहास अत्यधिक रोचक है, क्या ेंकि इसमें भारत की आर्य और अनार्य, वैदिक और अवैदिक, सभ्य और असभ्य, विकसित और अविकसित सभी परम्पराओं के तत्वों का समावेष हुआ है। पाषुपत मत शैव धार्मिक व्यवस्था का प्रथम साम्प्रदायिक उपज है, अतः शैव धर्म की उत्पत्ति की पृष्ठभूमि में ही पाश ुपत सम्प्रदाय के निर्मा णत्मक तत्वा ें का विष्लेषण उचित प्रतीत हा ेता है। भारत की सन्दर्भ में यह धारणा और भी अधिक समीचीन लगती है क्या ेंकि यहीं की धार्मिक विचारधारा उदार एवं सविष्णु आधारों पर विकसित हुई थी और इस उदारवादी प्रवृत्ति के कारण सभी धर्मो एवं विचारधाराओं में विभिन्न परम्पराओं और तत्वों को सम्मिश्रण हुआ।

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  • EP ID EP663629
  • DOI 10.5281/zenodo.3473448
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How To Cite

(2019). पाशुपत-सम्प्रदाय के रवततकों में लकु लीश का स्थान. International journal of research -GRANTHAALAYAH, 7(9), 292-298. https://europub.co.uk/articles/-A-663629