उषा प्रियंवदा का कथा साहित्य और स्त्री मनोविज्ञान

Journal Title: RIVISTA - Year 2017, Vol 1, Issue 1

Abstract

मनोविज्ञान सामान्य स्वस्थ व्यक्ति का अध्ययन करता है, वह केवल शारीरिक अध्ययन न करके मनुष्य के आन्तरिक भावों, विचारों के द्वन्द्व आदि का अध्ययन करता है। आधुनिक युग में मनोविज्ञान की उपादेयता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। मनोविज्ञान आज के उपन्यास के लिए अत्यावश्यक तत्त्व हो गया है। उपन्यास में कई ऐसे मनोवैज्ञानिक तत्त्वों का सहज समावेश हो गया है कि हम उनको मनोविज्ञान से पृथक् नहीं कर सकते। उपन्यास एक ऐसी विधा है जो कि जीवन मूल्यों की अभिव्यक्ति के लिए वृहत्तर फलक प्रस्तुत करता है। मानव जीवन के सभी रहस्यों को पूर्णता के साथ प्रस्तुत करता है। आज की महिलाओं का उपन्यास लेखन जिस मुकाम पर है, वह गुणवत्ता और परिणाम दोनों ही दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध है। हिन्दी कथा यात्रा में उषा प्रियंवदा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने अपने उपन्यासों में महानगरीय जीवन के संत्रास और आधुनिक जीवन शैली से उत्पन्न समस्याओं को अपनी पैनी नजर से देखा-परखा है। उनके कथा साहित्य में स्त्री की मनोवैज्ञानिक संवेदनाओं को पूर्ण अभिव्यक्ति प्रदान की गई है। उषा प्रियंवदा ने मूल रूप से भारतीय एवं पढ़ी-लिखी महिलाओं की समाज में स्थिति को रेखांकित करने का प्रयास किया है। कामकाजी अविवाहित स्त्री के सामाजिक परिवेश और व्यक्तिगत आकांक्षाओं के बीच जटिल अंतःसंबंधों की मनोवैज्ञानिक स्तर पर सूक्ष्म जांच-पड़ताल और सामाजिक स्तर पर बेहतर विकल्प की खोज में “पचपन खम्भे लाल दीवारें” उपन्यास संघर्ष की पहली महत्त्वपूर्ण अभिव्यक्ति है। शादी के सवाल पर अपनी एक सहेली से सुषमा कहती है- आप भी क्या यही मानती हैं, कि विवाह होना चाहिए? मेरे पास तो सभी कुछ है, आर्थिक रूप से स्वतंत्र हूं, जो चाहूं कर सकने में समर्थ हूं। समग्रतः उषा प्रियंवदा के कथा साहित्य में मूलतः आधुनिक और शिक्षित नारियों के अन्तर्द्वंद्व को अभिव्यक्ति दी गयी है। नारियो की दोयम स्थति एवं अति महत्वकांक्षाओॱॱ ने मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित किया है।

Authors and Affiliations

Hussaini Bohra

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  • EP ID EP214912
  • DOI 10.26476/rivista.2017.01.41-50
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Hussaini Bohra (2017). उषा प्रियंवदा का कथा साहित्य और स्त्री मनोविज्ञान. RIVISTA, 1(1), 41-50. https://europub.co.uk/articles/-A-214912